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कभी पाना मुझे / कुंवर नारायण

तुम अभी आग ही आग

मैं बुझता चिराग


हवा से भी अधिक अस्थिर हाथों से

पकड़ता एक किरण का स्पन्द

पानी पर लिखता एक छंद

बनाता एक आभा-चित्र


और डूब जाता अतल में

एक सीपी में बंद


कभी पाना मुझे

सदियों बाद

दो गोलार्धों के बीच

झूमते एक मोती में ।