चपत खाने को सर झुकाए हुए हैं।
भरतदास से लौ लगाए हुए हैं॥
कड़ी चोट क्या दिल पै खाए हुए हैं।
जो घामड़ की सूरत बनाए हुए हैं॥
अजबदेव मलऊन काशी शुकुल हैं।
बहुत इसको हम आज़माए हुए हैं॥
चपत खाने को सर झुकाए हुए हैं।
भरतदास से लौ लगाए हुए हैं॥
कड़ी चोट क्या दिल पै खाए हुए हैं।
जो घामड़ की सूरत बनाए हुए हैं॥
अजबदेव मलऊन काशी शुकुल हैं।
बहुत इसको हम आज़माए हुए हैं॥