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घरऊ दिल्लगी / प्रेमघन
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मथुरा वासुदेवश्च, यदुनाथो हरिस्तथा,
एकैकनर्थाय, किसु यत्र चतुष्टयम्।
मथुरानाथ ब्रह्मचारी अहै बड़ो ज्ञान धारी।
हरी हंस अति प्रसंस, केस मित्र जाके॥
कब से खड़ी हुई जमुना के बाग,
लोचन से लोचन है लाग।
दास अनन्त कवित्त भनन्त।
छनन्त कै बूटी लड़न्त मचावै॥