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बगरजे कत्ल गर शमशीर अवरूवी उठाते हैं / प्रेमघन
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बगरजे कत्ल गर शमशीर अवरूवी उठाते हैं,
इसी उम्मीद में हम भी एलो गरदन झुकाते हैं।
हजारों जाँ वलव होते उसी दम कूये जाना में,
अदा से जब कभी खिड़की का वह परदा हटाते हैं।
हिनाई हाथ रखकर दीदये तरपर मेरे बोले,
तमाशा देखिए हम आग पानी में लगाते हैं।
लिए सागर मये गुलगूँ वह साकी यों लगा कहने,
कि जो दे नक़द जाँ हमको उसे यह मय पिलाते हैं।
मसीहा की बहुत तारीफ सुन कर यार यों बोला
हजारों जाँ बलबहम एक बोसे में जिलाते हैं।
सुनाकर आशिकों को कल वह कातिल यों लगा कहने,
कलेजा थाम्ह लो लोगो अदा हम आजमाते हैं।
नहीं आसां है आना अब्र इस बागे मोहब्बत में,
जहाँ दोनों से जाते हैं वही इस जा पर आते हैं॥6॥