अजब दिलरुबा नन्द फ़रज़न्द जू है / प्रेमघन
अजब दिलरुबा नन्द फ़रज़न्द जू है।
इक आलम को जिसकी पड़ी जुस्तजू है॥
तेरी ख़ाके पा से रहे मुझको उलफ़त,
यही दिल की हसरत यही आरजू है।
सिफ़त का तेरी किस तरह से बयाँ हो,
कब इसमें किसे ताक़ते गुफ्तगू है॥
तुझे भूल कर गै़र को जिसने चाहा,
उसीकी मिली ख़ाक में आबरू है॥
जहाँ की हवा वा हवस में जो घूमा,
उड़ाता फिरा ख़ाक वह कू ब कू है॥
ज़मीनो फ़लक काह से कोह में भी,
जो देखा तो हर जाय मौजूद तू है॥
जिधर गौर करता हूँ होता हूँ हैरां,
अजब तेरी सनअत अयाँ चार सू है॥
कहाँ रुतबये युसूफ़ो हूरो ग़िलमां,
शहनशाह खूबां फ़कत एक तू है॥
गिलो आब से आब गुल कब ये पाते,
ये तेरी ही रंगत ये तेरी ही बू है।
महो मेहर अनवर सितरों में प्यारी,
तुम्हारी ही जल्वागिरी चार सू है।
तुही जल्वागर दैरदिल में है सब के.
अवस सब यह रोज़ा नमाज़ो वज्र है॥
बरसता रहे अब्र रहमत तुम्हारा।
यही "अब्र" की एक ही आरजू है॥
किया इश्क जुल्फ़े दुतां चाहता है।
बला क्यांे यह सर पै लिया चाहता है॥
हुआ दिल यह तुझ पर फ़िदा चाहता है॥
सरासर ख़ता बस किया चाहता है॥
कहाँ तू उसे बेवफ़ा चाहता है।
अरे दिल तू यह क्या किया चाहता है॥
नक़ाब उसके रुख से हटा चाहता है।
खि़ज़िल माह कामिल हुआ चाहता है॥
व फ़ज़ले ख़ुदा अब मेरे दौर दिल में।
किया घर व बुत महेलक़ा चाहता है।
हँसा गुल जो शाखे़े शजर में तो समझो।
कि अब यह ज़मीं पर गिरा चाहता है॥
बिछा गाल के तिल पै है दाम गेसू।
मेरा तायरे दिल फँसा चाहता है॥
यह शाने खु़दा है कि वह बुत भी बोला।
मेरा बख़्ते खु़फ़्ता जगा चाहता है॥
मेरे लग के सीने से वह हँस के बोला।
बता तू क्या इसके सिवा चाहता है॥
सुना रोज़ करते थे जिसकी कहानी।
वही आज मुझसे मिला चाहता है॥
ज़रा इक नज़र देख दे तू इधर भी।
यही दिल किया इल्तिजा चाहता है॥
बरसता रहे "अब्र" बाराने रहमत।
यही अब्र देने दुआ चाहता है॥10॥