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कजली / 28 / प्रेमघन
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अखरी हिन्दी बा अड़ी बोली
जैसो तू त्यों तिहारी, लगी भली यारी रे साँवलिया॥
कारे कान्हर के हित कुबजा, बिधि नै सँवारी रे साँवलिया॥
ज्यों चरवाहो तू त्यों चेरी, वह दई-मारी रे साँवरिया॥
राधा रानी सँग नहिं सोहै, मीत मुरारी रे साँवरिया॥
प्रेम प्रेमघन सम जन पाय, होय सुखकारी रे साँवरिया॥49॥