भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कजली / 66 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:39, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नटिनो की लय
तोरे पर गोरिया लुभानी रे साँवलिया॥टेक॥
गोल कपोलन पै लखि लांबी,
लट लोटत छितरानी रे साँवलिया॥
मोर मुकुट सिर चपलित लोचन,
की चितवन अलसानी रे साँवलिया॥
मिलिरस बरसु प्रेमघन तोपैं,
बिन हीं मोल बिकानी रे साँवलिया॥113॥