भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कजली / 72 / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:30, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छूट
प्रधान प्रकार के चतुर्थ विभेद में
नवीन संशोधन
कबहूँ तौ इत आवो, तनी बाँसुरी बजाओ,
मन मेरो बहलाओ; भूलै नाहीं तोरी साँवरी मुरतिया ना।
नैना तोरे रतनारे, अन्हियारे कजरारे,
नयन मद मतवारे, करैं जुवतिन के हिय घतिया ना।
खुली गालन पैं प्यारी, लट लहरैं तिहारी,
कारी कारी घूँघरवारी, डसैं मन मानो नागिनि की भँतिया ना।
मुख लखि चन्द लाजै, सीस मुकुट विराजै,
अंग अंग छबि छाजै; प्यारी-प्यारी प्रेमघन तोरी बतिया ना॥123॥