भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तब रोक न पाया मैं आँसू / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तब रोक न पाया मैं आँसू!


जिसके पीछे पागल होकर

मैं दौड़ा अपने जीवन-भर,

जब मृगजाल में परि‍वर्तित हो मुझपर मेरा अरमान हँसा!

तब रोक न पाया मैं आँसू!


जिसमें अपने प्राणों को भर

कर देना चाहा अजर-अमर,

जब विस्‍मृति के पीछे छिपकर मुझ पर मेरा मधुगान हँसा!

तब रोक न पाया मैं आँसू!


मेरे पूजन-आराधन को,

मेरे संपूर्ण समर्पन को,

जब मेरी कमजोरी कहकर मेरा पूजित पाषाण हँसा!

तब रोक न पाया मैं आँसू!