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गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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गुले-नग़मा
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रचनाकार | फ़िराक़ गोरखपुरी |
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प्रकाशक | |
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भाषा | हिन्दी |
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विविध | इस पुस्तक के लिये फ़िराक़ गोरखपुरी को 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- आँखों में जो बात हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमुनाहटें / फ़िराक़ गोरखपुरी
- है अभी महताब बाक़ी और बाक़ी है शराब / फ़िराक़ गोरखपुरी
- दीदनी है नरगिसे - ख़ामोश का तर्ज़े - ख़िताब / फ़िराक़ गोरखपुरी
- रात भी नींद भी, कहानी भी / फ़िराक़ गोरखपुरी
- एक शबे-ग़म वो भी थी जिसमें जी भर आये तो अश्क़ बहायें / फ़िराक़ गोरखपुरी
- बन्दगी से कभी नहीं मिलती / फ़िराक़ गोरखपुरी
- बे ठिकाने है दिले-ग़मगीं ठिकाने की कहो / फ़िराक़ गोरखपुरी
- उजाड़ बन के कुछ आसार से चमन में मिले / फ़िराक़ गोरखपुरी
- वो आँख जबान हो गई है / फ़िराक़ गोरखपुरी
- हाल सुना फ़सानागो, लब की फ़ुर्सूंगरी के भी / फ़िराक़ गोरखपुरी