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एक पेड़ चाँदनी / देवेन्द्र कुमार
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एक पेंड़ चाँदनी लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना एक फूल माँगने
ढिबरी की लौ जैसी लीक चली आ रही
बादल का रोना है बिजली शरमा रही
मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने ..॥
तन कातिक मन अगहन बार-बार हो रहा
मुझमें तेरा कुआर जैसे कुछ बो रहा
रहने दो वह हिसाब कर लेना बाद में.. ॥
नदी, झील सागर से रिश्ते मत जोड़ना
लहरों को आता है यहाँ वहाँ छोड़ना
मुझको पहुँचाया है तुम तक अनुराग ने.. ॥