Last modified on 20 दिसम्बर 2009, at 19:40

संवाद मृत्यु का था / शलभ श्रीराम सिंह

गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:40, 20 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह |संग्रह=उन हाथों से परिचित हूँ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

संवाद
मृत्यु का था

मुँह में कौर
जीवन
फन बचाते साँप की तरह
बाँबी से दूर होने के दुख से
विचलित हुआ थोड़ा-थोड़ा
और
खड़ा हो गया
फुफकारने के अंदाज़ में

काल के विरुद्ध काल की तरह
बराबर की जोड़ का
साहस और बल लेकर
कौर गले के नीचे उतरा

संवाद
मृत्यु का होने के बावजूद।


रचनाकाल : 1991, विदिशा