भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संवाद मृत्यु का था / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
संवाद
मृत्यु का था
मुँह में कौर
जीवन
फन बचाते साँप की तरह
बाँबी से दूर होने के दुख से
विचलित हुआ थोड़ा-थोड़ा
और
खड़ा हो गया
फुफकारने के अंदाज़ में
काल के विरुद्ध काल की तरह
बराबर की जोड़ का
साहस और बल लेकर
कौर गले के नीचे उतरा
संवाद
मृत्यु का होने के बावजूद।
रचनाकाल : 1991, विदिशा