Last modified on 24 दिसम्बर 2009, at 01:38

तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है / शलभ श्रीराम सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:38, 24 दिसम्बर 2009 का अवतरण ("तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है / शलभ श्रीराम सिंह" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है...
बड़े हो रहे है तुम्हारे सपने...
तुम्हारे विचार बड़े हो रहे हैं...

बड़ी दुनिया
बड़े सपने और बड़े विचारों के
ख़तरे भी बड़े होते हैं
बड़ी होती हैं उलझने
जटिलताएँ और बड़ी होती हैं उनकी

बड़ी दुनिया का बड़प्पन
अपने ख़तरों के बड़प्पन पर जीता है
ख़तरों का यह बड़प्पन
एक बड़ी दुनिया की बुनियादी जरूरत है
तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है


रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा