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तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है...
बड़े हो रहे है तुम्हारे सपने...
तुम्हारे विचार बड़े हो रहे हैं...
बड़ी दुनिया
बड़े सपने और बड़े विचारों के
ख़तरे भी बड़े होते हैं
बड़ी होती हैं उलझने
जटिलताएँ और बड़ी होती हैं उनकी
बड़ी दुनिया का बड़प्पन
अपने ख़तरों के बड़प्पन पर जीता है
ख़तरों का यह बड़प्पन
एक बड़ी दुनिया की बुनियादी जरूरत है
तुम्हारी दुनिया बड़ी हो रही है
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा