Last modified on 17 अक्टूबर 2010, at 13:06

पीड़ा पकड़े चले पंथ पर / केदारनाथ अग्रवाल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:06, 17 अक्टूबर 2010 का अवतरण

पीड़ा पकड़े चले पंथ पर
पानी-
पवन-
प्रलाप भोगते;
आगे-पीछे-दायें-बायें
ठौर ठिकाना-
जगह टोहते;
सत् का
‘पहुँचा’ पकड़ ना पाए;
सत् के सम्मुख खड़े बँबाए।

रचनाकाल: १९-०२-१९७९