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अंकुरण की संभावना हर बीज में होती है / वंदना गुप्ता

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लगता है मुझे
कभी-कभी डरना चाहिये
क्योंकि डर में एक
गुंजाइश छुपी होती है
सारे पासे पलटने की...

डर का कीडा अपनी
कुलबुलाहट से
सारी दिशाओं में
देखने को मज़बूर कर देता है
फिर कोई भी पैंतरा
कोई भी चेतावनी
कोई भी सब्ज़बाग
सामने वाले का काम नहीं आता
क्योंकि
डर पैदा कर देता है
एक सजगता
एक विचार बोध
एक युक्तिपूर्ण तर्कसंगत दिशा
जो कभी-कभी
डर से आगे जीत है
का संदेश दे जाती है
हौसलों में परवाज़ भर जाती है

डर डर के जीना नही
बल्कि डर को हथियार बनाकर
तलवार बनाकर
सजगता की धार पर चलना ही
डर के प्रति आशंकित सोच को बदलता है
और एक नयी दिशा देता है
कि
एक अंश तक डर भी हौसलों को बुलन्दी देता है
क्योंकि
अंकुरण की संभावना हर बीज में होती है
बशर्ते उसका सही उपयोग हो
फिर चाहे डर रूपी रावण हो या डर से आँख मिलाते राम
जीत तो सिर्फ़ सत्य की होती है
और हर सत्य हर डर से परे होता है

क्योंकि
डर की परछाईं तले
तब सजगता से युक्तिपूर्ण दिशा में विचारबोध होता है
और रास्ता निर्बाध तय होता है...
अब डर को कौन कैसे प्रयोग करता है
ये तो प्रयोग करने वाले की क्षमता पर निर्भर करता है...