रोला
(फाग और वंशी ध्वनि द्वारा स्तब्धता का संक्षिप्त वर्णन)
कबहुँक फागुन माँहि, दोऊ फगुवा मिलि खेलहिं ।
लखिओ मदमाँते-स्याम, कबहुँ सखियाँ हँसि हेलहिं ॥
ह्वै नबोढ कहुँ मुग्ध-तिया, मोहन-मन-रोहैं ।
हरि-मुख सुनि कहुँ बैनु, सबै-बिधि राधा मोहैं ॥४१॥
रोला
(फाग और वंशी ध्वनि द्वारा स्तब्धता का संक्षिप्त वर्णन)
कबहुँक फागुन माँहि, दोऊ फगुवा मिलि खेलहिं ।
लखिओ मदमाँते-स्याम, कबहुँ सखियाँ हँसि हेलहिं ॥
ह्वै नबोढ कहुँ मुग्ध-तिया, मोहन-मन-रोहैं ।
हरि-मुख सुनि कहुँ बैनु, सबै-बिधि राधा मोहैं ॥४१॥