Last modified on 4 जुलाई 2011, at 18:27

कबहुँक फागुन माँहि, दोऊ फगुवा मिलि खेलहिं / शृंगार-लतिका / द्विज

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:27, 4 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज }} {{KKPageNavigation |पीछे=बन, गिरि-उपबन जाइ, कबहुँ बहु-…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रोला
(फाग और वंशी ध्वनि द्वारा स्तब्धता का संक्षिप्त वर्णन)

कबहुँक फागुन माँहि, दोऊ फगुवा मिलि खेलहिं ।
लखिओ मदमाँते-स्याम, कबहुँ सखियाँ हँसि हेलहिं ॥
ह्वै नबोढ कहुँ मुग्ध-तिया, मोहन-मन-रोहैं ।
हरि-मुख सुनि कहुँ बैनु, सबै-बिधि राधा मोहैं ॥४१॥