चल उठ पागल मन,
सपनों की दुनिया में चल।
ऐसे अवसर मुझको चंद मिले हैं
जब भाव, शब्द। और छंद मिले हैं
तप-से निखरे तेरे बिरहा की अग्निर में जल।
जब-जब भीतर झांका खण्डिहर मिले
बाहर देखा तो बिखरते नर मिले
आंखों की बर्फ में गया सुनहरा सूरज गल।
जिन्द गी फकीर है मत अपनी कह
खारे आंखों के नीर आंखों में रह
अस्ताआचल में है सूरज, जिन्देगी रही है ढल।
अश्रुओं को शिव का गरल समझ पी जा
वक्र प्रेम-पथ है, सरल समझ जी जा
अभी बिछुड़ेंगे कितने ही दमयन्तीह और नल।