Last modified on 16 नवम्बर 2016, at 03:30

तय न हो पाया कि / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:30, 16 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामस्वरूप ‘सिन्दूर’ |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तय न हो पाया कि चुम्बन वासना या प्यार!
प्यार ने स्वीकार कर ली काँच की दीवार!

आह से धूमिल न होगा पारदर्शी रूप,
मेघमाला से ढलेगी इन्द्रधनुषी धूप,

तृप्ति के सर पर लटकती दूधिया तलवार!
प्यार ने स्वीकार कर ली काँच की दीवार!

होंठ पर हैं होंठ, करतल करतलों के पास,
भित्ति-चित्रों में मुखर है प्रीति का संत्रास,

यूँ लगे, जैसे किनारे पर खड़ी मझधार!
प्यार ने स्वीकार कर ली काँच की दीवार!

जानता है कौन, हम किस कन्दरा में लीन,
गन्ध है बेहोश, ऐसी बज रही है बीन,

हम उतर आये अतल में, क्षीर सागर पार!
प्यार ने स्वीकार कर ली काँच की दीवार!