Last modified on 5 जुलाई 2016, at 05:00

बोझ हस्ती का यूँ उठाना है / सिया सचदेव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:00, 5 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सिया सचदेव |अनुवादक= |संग्रह=फ़िक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बोझ हस्ती का यूँ उठाना है
ज़ब्त करना है मुस्कुराना है

तल्ख़ियां दर्मियान कितनी हो
फिर भी हर हाल में निभाना है

बाज़ आ दिल ज़रा संभल भी जा
और कब तक फ़रेब खाना है

इक तसलसुल है ज़िंदगी दुःख का
ग़म से रिश्ता बहुत पुराना है

सुल्ह हालात से करूँ क्यों कर
क़ुव्वत ए दिल को आज़माना है

मोड़ लूँ रुख मैं इस ज़माने से
झूठ से अब नहीं निभाना है

क्या मिलेगा मिटा के यूँ ख़ुद को
दिल को कब तक 'सिया' जलाना है