Last modified on 15 जुलाई 2016, at 00:04

विश्वनाथ की न्यारी नगरी / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 15 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनो कबीरा
कल हम लुटे तुम्हारी नगरी में
 
आये थे हम यही सोचकर
नगरी लूटेंगे
ठगी करेंगे और दिखाएँगे
तुमको ठेंगे
 
हमें मिले
दुनिया-भर के व्यापारी नगरी में
 
सभी आये थे दाँव लगाने
नगरी को ठगने
पैदा किये नये युग में ठग
सारे ही जग ने
 
फँसे दिखे तुम
जाल बिछे थे सारी नगरी में
 
उलटी बाज़ी खेल रहे थे
अपने सुँघनी साहु
चन्द्रमौलि को पूज रहे थे
उन्हें ग्रस गये राहु
 
पिटा दिवाला
विश्वनाथ की न्यारी नगरी में