Last modified on 15 अक्टूबर 2017, at 16:45

हम बहुत कायल हुए हैं / मनोज जैन 'मधुर'

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:45, 15 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोज जैन 'मधुर' |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम बहुत कायल हुए हैं
आपके व्यवहार के।
आँख को सपने दिखाये
प्यास को पानी ।
इस तरह होती रही
हर रोज़ मनमानी।
शब्द भर टपका दिए दो
होंठ से आभार के।


लाज को घूँघट दिखाया
पेट को थाली।
आप तो भरते रहे पर
हम हुए खाली।
पीठ पर कब तक सहें
चाबुक समय की मार के।


पाँव को बाधा दिखाई
हाथ को डण्डे।
दे दिए बैनर किसी ने
दे दिए झन्डे।
हो सके कब जीत के हम
हो सके कब हार के।