याद रहे रंगों का मेला, रंगों की रानी!
करो कुछ ऐसी नादानी!
नयनों में अरुणाभा तैरे
अधर हुए रसभीने,
कोने-कोने सोम कलश हैं
चलो-चलें हम पीने,
ये, वे क्षण हैं, जिनको तरसें बड़े-बड़े ज्ञानी!
करो कुछ ऐसी नादानी!
पार करें अंजन के रेखा
चितवन बाज़ न आये,
तप्त शिराओं पर पड़ते हैं
रति-अनंग के साये,
गर्म अबीरी साँसों को कर दो पानी-पानी!
करो कुछ ऐसी नादानी!
ठुमुक चलो तुम ऐसे, जैसे
जल-तरंग लहराये,
भर उमंग खींचो पिचकारी
तन विवस्त्र हो जाये,
अनजाने में करो शरारत जनि-पहचानी!
करो कुछ ऐसी नादानी!
इंद्र धनुष तोड़ा बसन्त ने
सिन्दूरी आँगन में,
रोली को गुलाल ले भागा
यौवन के मधुबन में,
लजवन्ती कामना न ढक पाये आँचल धानी!
करो कुछ ऐसी नादानी!