भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सजनी / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:44, 24 नवम्बर 2025 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी प्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
कि सजनी अब तो रहा न जाए
पानी में तेज़ाब घोल दे नदी चुरा ले जाए
रात बनाए रक्खे कोई दिया न जलने पाए
गाना इतना तेज़ लगा दे बात न होने पाए
हवा धुएँ से भर दे सीधे पेड़ काटने आए
बात कहो तो हाथ पकड़ ले औ' पिस्तौल दिखाए
बहुत प्यार करने का वादा करके घर न आए
कि साजन सत्ता होता जाए
कि साजन कुत्ता होता जाए
कि सजनी अब तो रहा न जाए

