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इक हसीन-सा ख़्वाब सजाये हैं यारो / क्षेत्र बहादुर सुनुवार

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इक हसीन-सा ख़्वाब सजाये हैं यारो
कि यूँ तमन्ना-ए-दिल बनाये हैं यारो

कुछ गुस्ताखी की हिमाकत की याँ
चाँद के शहर में चाँद लगाये हैं यारो

मुन्तशिर हैं यहाँ तो तमाम हकिकत
हसरतो के सम्अ गो जलाये हैं यारो

रोशन-ए-दीद का छिपाना है मुहाल
नीयत तो हैं भली पर छुपाये हैं यारो

ख़ौफ हैं खिँजा का बहार से पहले
किस्मत में मेरे ’प्रेम’ पराये हैं यारो।