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औरों का भी ख़्याल कभी था अभी नहीं / हस्तीमल 'हस्ती'

औरों का भी ख़्याल कभी था अभी नहीं
इंसान इक मिसाल कभी था अभी नहीं

पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था अभी नहीं

क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था अभी नहीं

क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था अभी नहीं

क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था अभी नहीं