भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छमु-छमु / मुकेश तिलोकाणी
Kavita Kosh से
खिल हाणि
चपनि में
चीभाटिजी वई अथसि!
उफु़
अखर निड़ीअ में
चुटिी पिया अथसि
ओ...हो...!
हथ मिलाइण जे
डप खां
हथ रङे छॾिया अथाईं
पर
पैर अञा
छमु छमु
कनिसि पिया।

