भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुआ / देवी प्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरा बेटा दरवाज़े पर घंटियाँ बजाता रहा लेकिन
मैंने दरवाज़ा नहीं खोला—मैं नाराज़ था

दोस्त ने फ़ोन किया तो मैंने उठाया नहीं
एक स्त्री के ख़त का जवाब मैंने जीवन भर नहीं दिया

ये घंटियाँ
ये दस्तकें

ये इबारतें
ये आवाज़ें

बनी रहें