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दुआ / देवी प्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
मेरा बेटा दरवाज़े पर घंटियाँ बजाता रहा लेकिन
मैंने दरवाज़ा नहीं खोला—मैं नाराज़ था
दोस्त ने फ़ोन किया तो मैंने उठाया नहीं
एक स्त्री के ख़त का जवाब मैंने जीवन भर नहीं दिया
ये घंटियाँ
ये दस्तकें
ये इबारतें
ये आवाज़ें
बनी रहें

