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फिर-फिर जनम लें / नवल शुक्ल
Kavita Kosh से
जब मैं अकेला होता हूँ
पुकारता हूँ तुम्हें
जहाँ लावा बहता है
दूब उगती है
पड़ती हैं या नहीं सूरज की किरणें
समुद्र ठहरा होता है, ऊपर या नीचे
शंख, सीपी, घोंघे होते हैं
पहाड़ खड़े होते हैं
आँखें टँकी होती हैं
उठती है कराह
बूंद अटकी होती है
जहाँ-जहाँ होती हो तुम
वहाँ
तुम्हारे गर्भ के पास
उनींदी आँखों और
प्यार से सराबोर
धारण करो हमें
हम फिर-फिर जनम लें।

