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विज्ञ है पर ज़िन्दगी को कम समझता है / शिव ओम अम्बर
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विज्ञ है पर ज़िन्दगी को कम समझता है,
मैं विवश हूँ वो मुझे निर्मम समझता है।
है अमावस्या यहाँ हर कामना खुद में,
चित्त का विभ्रम उसे पूनम समझता है।
पढ़ नहीं पाता हृदय की धड़कनों को वो,
शेष सारे शास्त्र निगमागम समझता है।

