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{{KKRachna
|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
}}
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<poem>
, सो सिर दीजै डारि।
जिस पिंजर महिं विरह नहिं, सो पिंजर लै जारि॥
नानक चिंता मति करहु, चिंता तिसही हेइ।
जल महि जंत उपाइ अनु, तिन भी रोजी देइ॥
</poem>
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|रचनाकार= चन्द्रकुंवर बर्त्वाल
}}
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, सो सिर दीजै डारि।
जिस पिंजर महिं विरह नहिं, सो पिंजर लै जारि॥
नानक चिंता मति करहु, चिंता तिसही हेइ।
जल महि जंत उपाइ अनु, तिन भी रोजी देइ॥
</poem>

