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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिश्चंद्र पांडेय 'सरल'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatAwadhiRachna}}
<poem>
मनई बन मनई का प्यार दे,
भेद जाति धर्म कै बिसार दे,
गंगा कै नीर गुन गाये
देसवा कै पीर गुन गाये।
हम तुम न और कोऊ तन मन से भारती,
मन्दिर अजान होय मस्जिद मा आरती,
नवा नवा जग का बिचार दे,
पंडित औ पीर का सुधार दे,
तुलसी औ मीर गुन गाये
घर घर कबीर गुन गाये।
… … देसवा कै पीर गुन गाये।
गीता कुरान औ कुरान बनै गीता,
जाव भूलि अबलौं कि दिन कैसे बीता,
काबा औ कासी बिसार दे,
दूनौ का एक रूप ढार दे,
सन्त औ फकीर गुन गाये
रंक औ अमीर गुन गाये।
… … देसवा कै पीर गुन गाये।
‘हे’ न लिखै हिन्दू न ‘मीम’ लिखै मुस्लिम
‘हे’ औ ‘मीम’ हम लिखैं एक रहैं हम तुम,
मीत बनैं सबही पुकार दे,
अरुझी लट अइसन सँवार दे,
ईद औ अबीर गुन गाये
निखरी तस्वीर गुन गाये।
… … देसवा कै पीर गुन गाये।
</poem>
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|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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मनई बन मनई का प्यार दे,
भेद जाति धर्म कै बिसार दे,
गंगा कै नीर गुन गाये
देसवा कै पीर गुन गाये।
हम तुम न और कोऊ तन मन से भारती,
मन्दिर अजान होय मस्जिद मा आरती,
नवा नवा जग का बिचार दे,
पंडित औ पीर का सुधार दे,
तुलसी औ मीर गुन गाये
घर घर कबीर गुन गाये।
… … देसवा कै पीर गुन गाये।
गीता कुरान औ कुरान बनै गीता,
जाव भूलि अबलौं कि दिन कैसे बीता,
काबा औ कासी बिसार दे,
दूनौ का एक रूप ढार दे,
सन्त औ फकीर गुन गाये
रंक औ अमीर गुन गाये।
… … देसवा कै पीर गुन गाये।
‘हे’ न लिखै हिन्दू न ‘मीम’ लिखै मुस्लिम
‘हे’ औ ‘मीम’ हम लिखैं एक रहैं हम तुम,
मीत बनैं सबही पुकार दे,
अरुझी लट अइसन सँवार दे,
ईद औ अबीर गुन गाये
निखरी तस्वीर गुन गाये।
… … देसवा कै पीर गुन गाये।
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