भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= उदयप्रकाश|संग्रह= एक भाषा हुआ करती है / उदय प्रकाश
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
पेसिफ़िक मॉल के ठीक सामने
सड़क के बीचोंबीच खड़ा है देर से
वह चितकबरा
किसी संत की
या फ़िर किसी ड्रग-एडिक्ट की
उसके दोनों ओर चलता रहता है
अनंत ट्रैफ़िक
घंटों से वह वहीं खड़ा है चुपचाप
मोहनजोदाड़ो की मुहर में उत्कीर्ण
इतिहास से पहले का वृषभ
या काठमांडू का नांदी
कभी-कभी बस वह अपनी गर्दन हिलाता है
किसी मक्खी के बैठने पर
उसके सींगों पर टिका आकाश थोड़ा-सा डगमगाता है
उसकी स्मृतियों में अभी तक हैं खेत
अपनी स्मृतियों की घास को चबाते हुए
उसके जबड़े से बाहर कभी-कभी टपकता है समय
झाग की तरह ।
</poem>

