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Kavita Kosh से
गर वो नाक़र्दा गुनाहों की सज़ा देते हैं
देर से जाऊँगा दफ़्तर तो कटेगी तनख़्वाहकटेगा वेतन
वो इसी डर से मुझे रोज़ जगा देते हैं
यूँ इशारों से मुझे पास बुलाते क्यों हो
लोग तो तिल का यहाँ ताड़ बना देते हैं
हक़ में बीमार के करते हैं दुआएं भी तबीब
कुछ 'रक़ीब' ऐसे हैं जो सिर्फ़ दवा देते हैं
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