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{{KKCatGhazal}}
<poem>
ऐसे दिल से मेरे धुवाँ निकले
जैसे यादों का कारवाँ निकले
जाने कब छोड़कर कमाँ निकले
मुन्तज़िर है कि कब खिजाँ निकले
ग़ालिबो-मीर और दाग़-ओ-फ़िराक
कैसे - कैसे थे खुशबयाँ खुश-बयाँ निकले
कोई उनतीस था नहीं उनमें

