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{{KKRachna
|रचनाकार=रश्मि प्रभा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
उसकी चाल में कोई घबराहट नहीं,
न आँखों में शिकन,
न होठों पर शिकायत ।
हरियाली की गोद में,
वो एक और दिन को
सिर पर ढोती चली जा रही है।
लोग कहते हैं
"अहा, कितना सुंदर दृश्य है!"
कोई नहीं पूछता,
ना ही जानना चाहता है
कि उसने कब से नींद पूरी नहीं की !
उसके तलवों में कांटे चुभे या सपने !
देखने से सब सहज लगता है,
पर सहज हो ही
बिल्कुल जरूरी नहीं ।
</poem>
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उसकी चाल में कोई घबराहट नहीं,
न आँखों में शिकन,
न होठों पर शिकायत ।
हरियाली की गोद में,
वो एक और दिन को
सिर पर ढोती चली जा रही है।
लोग कहते हैं
"अहा, कितना सुंदर दृश्य है!"
कोई नहीं पूछता,
ना ही जानना चाहता है
कि उसने कब से नींद पूरी नहीं की !
उसके तलवों में कांटे चुभे या सपने !
देखने से सब सहज लगता है,
पर सहज हो ही
बिल्कुल जरूरी नहीं ।
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