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Kavita Kosh से
रह गई सूनी गली !
जल उठा फिर दीप धुन्धलाधुँधला-सा
किसी की याद में
एक बत्ती कण्ठ तक डूबी
वर्जनाओं में पली !
सो गई दरगाह में
ढूँढ़ता फिरता पथिक मंज़िल
सैर को निकली हिमानी
गुदगुदी करती हवा

