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|रचनाकार=शैलेन्द्र सिंह दूहन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
बादल की आखों का पानी चातक को ना तरसाए,
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
नफरत की आँधी के आगे कभी झुके ना मानवता,
अंदेशों की सौदाई बन कभी चुके ना मानवता।
बहते दरिया कीचड़ हो ना बदबू का सैलाब बनें,
प्यासा सागर भीख माँगता सूखे के ना घर आए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
कमरों आगे बूढ़ा आँगन लाचारी को ढोए ना,
देख जवानी की गद्दारी कभी बुढ़ापा रोए ना।
शाख बाँध मजदूरी की ना पेड़ बने कोई पौधा
खुलकर जी लें बच्चे बचपन भूख गरीबी मर जाए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
थूक खुशामद सादेपन पर चढ़ता सूरज बने नहीं
पूनम पीकर दूध चाँद का कभी अँधेरा जने नहीं।
बुझे दियों की आँखों में ना दोष हवा का दिखे कभी
साहस वाली जोत जली हो उजयारा ना घबराए
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
कुमकुम कजरा झुमके पायल जात-धर्म से नहीं डरें,
कभी जड़ें ना खूँटे बन लैला-मजनू को अलग करें।
घूँघट की मर्यादा लाँघे ना आखों की बेशर्मी
मौन गीत गा गूंगी लज्जा फूलों की ज्यों मुस्काए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
कोई हसरत पैर सिकुड़कर रिते पेट में चुभे नहीं,
रिश्तों के पुल बनकर खाई जीवन पथ में खुबे नहीं।
चुपड़ी रोटी गाली समझे ना किल्लत की रोटी को
झूठ न हैक करे सच को ना पूँजी श्रम को ठग पाए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
नहीं किसी को कोई पट्टा तमगे में तब्दील लगे,
कोई मित ना ब्लैकहोल बन भाईचारा लील सके।
हँसी-खुशी से जी ले दुनिया ढाई अक्षर कबिरा के
टीका टोपी पगड़ी अल्टर आपस में ना टकराएँ
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए ।
</poem>
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बादल की आखों का पानी चातक को ना तरसाए,
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
नफरत की आँधी के आगे कभी झुके ना मानवता,
अंदेशों की सौदाई बन कभी चुके ना मानवता।
बहते दरिया कीचड़ हो ना बदबू का सैलाब बनें,
प्यासा सागर भीख माँगता सूखे के ना घर आए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
कमरों आगे बूढ़ा आँगन लाचारी को ढोए ना,
देख जवानी की गद्दारी कभी बुढ़ापा रोए ना।
शाख बाँध मजदूरी की ना पेड़ बने कोई पौधा
खुलकर जी लें बच्चे बचपन भूख गरीबी मर जाए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
थूक खुशामद सादेपन पर चढ़ता सूरज बने नहीं
पूनम पीकर दूध चाँद का कभी अँधेरा जने नहीं।
बुझे दियों की आँखों में ना दोष हवा का दिखे कभी
साहस वाली जोत जली हो उजयारा ना घबराए
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
कुमकुम कजरा झुमके पायल जात-धर्म से नहीं डरें,
कभी जड़ें ना खूँटे बन लैला-मजनू को अलग करें।
घूँघट की मर्यादा लाँघे ना आखों की बेशर्मी
मौन गीत गा गूंगी लज्जा फूलों की ज्यों मुस्काए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
कोई हसरत पैर सिकुड़कर रिते पेट में चुभे नहीं,
रिश्तों के पुल बनकर खाई जीवन पथ में खुबे नहीं।
चुपड़ी रोटी गाली समझे ना किल्लत की रोटी को
झूठ न हैक करे सच को ना पूँजी श्रम को ठग पाए।
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए।
नहीं किसी को कोई पट्टा तमगे में तब्दील लगे,
कोई मित ना ब्लैकहोल बन भाईचारा लील सके।
हँसी-खुशी से जी ले दुनिया ढाई अक्षर कबिरा के
टीका टोपी पगड़ी अल्टर आपस में ना टकराएँ
नेह भले के देखे सपने कहीं कभी ना मुरझाए ।
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