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Kavita Kosh से
<poem>
...हम तुमसे क्या उम्मीद करते
तुमने तो खुद अपने शरीर के
बाएं हिस्से को अछूत बना डाला
सब कुछ बांटा
किया विघटन में विकास
और अब देखो बाम्हन ब्राम्हण देव
इतना सब कुछ करते हुए आज अकेले बचे तुम
अकेले...और...अछूत !

