भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKRachna
|रचनाकार=तुलसीदास
}}{{KKCatKavita}}<poem>
ममता तू न गई मेरे मन तें॥
पाके केस जनमके साथी, लाज गई लोकनतें।
जैसे ससि-मंडल बिच स्याही छुटै न कोटि जतनतें।
तुलसीदास बलि जाउँ चरनते लोभ पराये धनतें॥४॥
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,395
edits