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|संग्रह=कहीं नहीं वहीं / अशोक वाजपेयी
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हम वहाँ भी जायेंगे
जहाँ हम कभी नहीं जायेंगे
अपनी आखिरी उड़ान भरने से पहले,नीम की डाली पर बैठी चिड़िया के पास,आकाशगंगा में आवारागर्दी करते किसी नक्षत्र के साथ,अज्ञात बोली में उचारे गये मंत्र की छाया मेंहम वहाँ भी जायेंगे<br>जहाँ हम कभी स्वयं नहीं जायेंगे<br><br>तो इन्हीं शब्दों से-
अपनी आखिरी उड़ान भरने से पहले,<br>नीम की डाली पर बैठी चिड़िया के पास,<br>आकाशगंगा में आवारागर्दी करते हमें दुखी करेगा किसी नक्षत्र के साथप्राचीन विलाप का भटक रहा अंश,<br>अज्ञात बोली में उचारे गये मंत्र की छाया में<br>हम जायेंगे<br>आराधना करेंगेस्वयं नहीं<br>मंदिर से निकाले गयेतो इन्हीं शब्दों सेकिसी अज्ञातकुलशील देवता की-<br><br>
हमें दुखी करेगा किसी प्राचीन विलाप का भटक रहा अंश,<br>हम आराधना करेंगे<br>थककर बैठ जायेंगेमंदिर से निकाले गये<br>दूसरों के लिए की गयीकिसी अज्ञातकुलशील देवता शुभकामनाओं और मनौतियों कीछाँह में-<br><br>
हम थककर बैठ बिखर जायेंगे<br>दूसरों के लिए पंखों की गयी<br>तरहशुभकामनाओं पंखुरियों की तरहपंत्तियों और मनौतियों शब्दों की छाँह मेंतरह-<br><br>
हम बिखर जायेंगे<br>पंखों की तरह<br>पंखुरियों की तरह<br>पंत्तियों और शब्दों की तरह-<br><br> हम वहाँ भी जायेंगे<br>जहाँ हम कभी नहीं जायेंगे।<br/poem>
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