भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं <br>
तुम को शायद मुघालता मुग़ालता है कोई <br><br>
देर से गूँजतें हैं सन्नाटे <br>
जैसे हम को पुकारता है कोई <br><br>

