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|रचनाकार=विजय वाते
|संग्रह= दो मिसरे / विजय वाते
{{KKCatGhazal}}
}}
लोरियों तक सभी है शहज़ादे <br>
अय खुदा लोरियाँ ही बरसा दे|<br><br>
एक तारा उगा जो शाम ढले,<br>उसको सौ सुरजों सूरजों की उर्जा दे|<br><br>
दरमियाँ बर्फ का समंदर है,<br>आ समंदर में धुप धूप बिखरा दे|<br><br>
हर तरफ़ आग-सी बरसती है,<br>ये दुआ है कि पौधा छाया दे|<br><br>
तूने क्या सोच के कहा है "विजय"<br>
बात इतनी सी और समझा दे|