शायद / प्रभात त्रिपाठी
शायद
बहुत कम लोग जानते हैं
वह भाषा
जिसमें तराई शब्द का अर्थ हे
तालाब
शायद बहुत कम लोगों ने देखा हो वो तालाब
जिसे चित्र की तरह उतारकर
मैं लिखना चाहता हूँ
आत्मा में घटता चमत्कार
शायद मन्दिर का वह स्वयंभू लिंग
असल अधिष्ठान हो देवाधिदेव का
और उनके गण
दिन भर छिपे रहते हों
पीपल और बरगद में
और रात को
उनका दर्शन पाते हों
उनके भक्त
ऊँची डगाल से
काई भरे हरे जल में कूदकर
बतखों की तरह डोलते तैरते
शुरू करते हो अपना खेल
और गरमाता हो उनका रक्त
यौवन के समागम का महोत्सव
शायद मनाता हो
लिंगराज मन्दिर के विशाल आँगन में
शायद वहां इसी नाम का कोई तालाब हो
जिसे अभी तराई कहकर मैंने देखा
काली के पैरों तले दबे शंकर को
शायद ईश्वर को भी कभी-कभार
सूझता हो एसा मज़ाक
जैसे मैंने किया इस पल
शायद आँखों में बेवजह
छलक आते जल को रोकने का
कोई दूसरा रास्ता नहीं था
मेरे पास
शायद रूकने के पहले मेरी साँस
आख़िरी बार
करना चाहती है प्यार
देवाधिदेव के सामने
देखती हुई चमत्कार
गीले केश छितरे पीठ पर
आधी झुकी वो लड़की
चढ़ा रही है जल
लिंगराज पर

