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साधो / देवी प्रसाद मिश्र

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साधो पानी बहुत पुराना नई लहर का
असर नहीं होता है ज़ाइद बहुत ज़हर का

कहाँ रह गया ईश्वर दिखता नहीं दहर का
नज़्म हो गई पता नहीं है किसी बहर का

सुबह हो रही पता नहीं है किसी सहर का
वो निशान भी नहीं मिटा है किसी कुहर का

काला पानी होता जाता नदी नहर का
हाल बताने आऊँगा मैं कभी इधर का

तुमसे हाल पूछने आया नहीं उधर का