भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चन्द्र शेखर आजाद / श्रीकृष्ण सरल / चित्र-विचित्र / पृष्ठ १

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह चित्र, तुम्हारी आँखों के सम्मुख है जो,
चल-समारोह यह जाता दिखलाई देता।
लगता, अँग्रेजी शासन का वैभव-विलास,
इस तरह अकड़ कर ही यह अँगडाई़ लेता।

यह शान-वान, यह ठाठ-बाट, गाजे-बाजे,
दे रहे साथ सजधज कर, राजे-रजवाडे।
यह कदम-कदम आगे बढ़ती पैदल सेना,
ये घुड़सवार, हाथों में ही झण्डे गाड़े।

यह घूम-झूम चलता पर्वत जैसा हाथी,
यह सजी लाट साहब की आज सवारी है।
भारतवासी चूँ करें, नहीं वह धाक जमे,
इसलिए आज की यह सारी तैयारी है।

यह चित्र इसी क्रम का है, यह भगदड़ कैसी?
कह रहा धुँआ, यह बम का हुआ धड़ाका है।
बच गए लाट साहब हैं बिलकुल बाल-बाल,
उनके यश पर इस तरह पड़ा यह डाका है।

मैंने लोगों से चर्चा की, तो बतलाया,
यह काम किसी का नहीं, क्रांतिकारी दल का।
बम-काण्ड योजना थी यह रासू दादा की,
लग गया पता अब शासन को उनके बल का।

लो पलट दिया यह पृष्ठ, दूसरा चित्र दिखा,
हो रही सभा यह गुप्त क्रांतिकारी दल की।
ये सभी क्रांति के माने हुए सितारे हैं,
सब आग लिए अपने-अपने अन्तस्तल की।

इनकी बातें मेरे कानों में भी आईं,
ये दिखे मुझे सब के सब प्राणों के दानी।
आजाद उपस्थित हुआ नहीं, पर निर्विरोध,
वह चुना गया था इस सेना का सेनानी।

उसके प्रति यह निष्ठा, ऐसा विश्वास अडिग,
यह मुझे हर्ष की और गर्व की बात बनी।
उस सेनानी ने दल में नई जान डाली,
फिर जोर-शोर से अँग्रजों से जंग ठनी।

यह नया पृष्ठ, यह नया चित्र, देखें इसको,
आजाद-भगत, ये गुप्त मन्त्रणा में रत हैं।
इतने स्नेहिल, भाई-भाई से अधिक प्रेम,
जो असंभाव्य, ये उसको करने उद्यत हैं।

इनकी बातों का यह रहस्य था मिला मुझे,
इनको असेम्बली में करनी थी बमबारी।
शासन के बहरे कान खोलने थे उनको,
आजाद, व्यवस्था उसने ही की थी सारी।

वह जाने कितनी बार सभा में हो आया,
की जाँच, स्वयं उसने सब कुछ देखा-भाला।
जब हुआ उसे सन्तोष, योजना सक्रिय थी,
केवल न सभा, उसने साम्राज्य हिला डाला।

जैसे ये देखे, वैसे चित्र अनेकों हैं,
इनकी मस्ती के कई रूप हैं, रंग कई।
आजाद, झलक मिलती है उसकी कई जगह,
चित्रित उससे जीवन के यहाँ प्रसंग कई।

निर्द्वंन्द्व घूमता था वह मुक्त-पवन जैसा,
वह मन की गति जैसा ही था आता-जाता।
व्यक्तित्व शीत-ज्वर जैसा ही था कुछ उसका,
कँप-कँपी छूटती, शासन उससे थर्राता।

जिसको पढ़-पढ़ कर लोग वीर बनते जाते,
आजाद, वीरता की वह जीवित परिभाषा।
भारत-माता का, वह साकार सुखद सपना,
उसके अन्तर की वह सबसे उज्ज्वल आशा।