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अफ़साना-ए-उल्फ़त है, इशारों से कहेंगे.. / श्रद्धा जैन

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अफ़साना-ए-उल्फ़त है, इशारों से कहेंगे
तुम भी नहीं समझे तो सितारों से कहेंगे

हम सिद्क़-ओ-इबादत से कभी अज़्म-ओ-अदा से
हाँ अहद-ए-मोहब्बत इन्हीं चारों से कहेंगे

आगोश में आ जाए समंदर जो वफ़ा का
हर लम्हे की रूदाद किनारों से कहेंगे

चेहरे से चुराओगे जो सुर्खी-ए-तब्ब्सुम
हम हाल तुम्हारा भी बहारों से कहेंगे

आँखों में जो रोशन हैं, वफ़ा के कई जुगनू
ज़ज़्बात ये “श्रद्धा” के, हज़ारों से कहेंगे