भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन / फ़राज़
Kavita Kosh से
(अब के रुत बदली तो ख़ुश्बू का सफ़र देखेगा कौन / फ़राज़ से पुनर्निर्देशित)
अब के रुत बदली तो ख़ुशबू का सफ़र देखेगा कौन
ज़ख़्म फूलों की तरह महकेंगे पर देखेगा कौन
देखना सब रक़्स-ए-बिस्मल में मगन हो जाएँगे
जिस तरफ़ से तीर आयेगा उधर देखेगा कौन
वो हवस हो या वफ़ा हो बात महरूमी की है
लोग तो फल-फूल देखेंगे शजर देखेगा कौन
हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन
आ फ़सील-ए-शहर से देखें ग़नीम-ए-शहर को
शहर जलता हो तो तुझ को बाम पर देखेगा कौन