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अस्तित्व का स्वाद / ओम पुरोहित ‘कागद’

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प्याज के छिलकों की तरह
जीवन के दिन,
उतरते... उतरते....
चले गये,
और मैं
भीतर की
अन्तिम पर्त मात्र रह गया हूं
फिर भी लोग,
न जाने क्यूं मुझे
अपनी आहार सामग्री में रखते हैं ।
समय,
असमय
सुबह
और शाम
मेरे अस्तित्व का
स्वाद चखते हैं।